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बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय | Bura Jo Dekhan Main Chala | Kabir Ke Dohe With Hindi Meaning


कबीर दास के लोकप्रिय दोहे के संग्रह को यहां तीन भागो में प्रस्‍तुत किया है। ये पोस्ट तीसरा भाग है।

कबीर के दोहे | Bura Jo Dekhan Main Chala

Bura Jo Dekhan Main Chala  Kabir Ke Dohe
Kabir Ke Dohe Part -3
|| 1 ||
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ॥

भावार्थ || 1 || – कबीर दास जी कहते हैं कि जब मैं इस दुनिया में बुराई खोजने गया, तो मुझे कुछ भी बुरा नहीं मिला. जब मैंने अपने मन में झाँका, तो पाया की मुझसे बुरा कुछ नहीं है।

|| 2 ||
कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये
ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये

भावार्थ || 2 || – कबीर दास जी कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे उस समय सारी दुनिया खुश थी और हम रो रहे थे। जीवन में कुछ ऐसा काम करके जाओ कि जब हम मरें तो दुनियां रोये और हम हँसे।

|| 3 ||
बैद मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार
एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम आधार

भावार्थ || 3 || – कबीर दास जी कहते हैं कि यह जगत एक दिन समाप्त हो जाना है, रोगी मरता है, भोगी मरता है और एक रोज सभी का इलाज करने वाला वैद्य भी मृत्यु को प्राप्त हो ही जाता है लेकिन एक वह व्यक्ति मृत्यु से बच जाता है जो हरी (राम) के नाम का सुमिरण करे।

|| 4 ||
जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही

भावार्थ || 4 || – कबीर दास जी कहते हैं कि जब मेरे अंदर अहंकार था, तब तक ईश्वर से परिचय नहीं हो सका। अब जब अहंकार या आत्मा के भेदत्व का अनुभव जब समाप्त हो गया जब से मैंने गुरु रूपी दीपक को पाया है और तब से मेरे अंदर का अंधकार खत्म हो गया है।

|| 5 ||
ऐसा कोई ना मिले, हमको दे उपदेस
भौ सागर में डूबता, कर गहि काढै केस

भावार्थ || 5 || – कबीर संसारी जनों के लिए दुखित होते हुए कहते हैं कि इन्हें कोई ऐसा पथप्रदर्शक न  मिला जो यथार्थ उपदेश देता और संसार सागर में डूबते हुए इन प्राणियों को अपने हाथों से केश पकड़ कर डूबने से बचा लेता।

|| 6 ||
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय

भावार्थ || 6 || – कबीर दस जी कहते हैं कि परमात्मा तुम मुझे इतना धन दो कि जिसमे बस मेरा गुजरा चल जाये और मैं खुद भी अपना पेट पाल सकूँ और घर में आये साधु को भी भोजन करा सकूँ।

|| 7 ||
बनिजारे के बैल ज्यों, भरमि फिर्यो चहुँदेश
खाँड़ लादी भुस खात है, बिन सतगुरु उपदेश

भावार्थ || 7 || – कबीर दास जी कहते हैं कि जिस प्रकार सौदागरों (बंजारों) के बैल पीठ पर शक्कर लाद कर भी भूसा ही खाते हुए चारों और फेरि करते (घूमते) है। उसी प्रकार यथार्थ सद्गुरु के उपदेश बिना मनुष्य भी आत्मकल्याण के मार्ग से वंचित रहता है।

|| 8 ||
जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप
जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप

भावार्थ || 8 || – कबीर दास जी कहते हैं कि जहाँ दया है, वहाँ धर्म है और जहाँ लोभ है, वहाँ सदा पाप है। इसी प्रकार जहाँ क्रोध है, वहाँ काल का निवास है और जहाँ क्षमाशील प्राणी है, वहाँ ईश्वर निवास करता है।

|| 9 ||
जाती न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान
मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान

भावार्थ || 9 || – कबीरदास कहते हैं कि संतजन (साधु) की जाति मत पूछो, यदि पूछना ही है तो उनके ज्ञान के बारे में पूछ लो। तलवार को खरीदते समय सिर्फ तलवार का ही मोल-भाव करो, तलवार रखने के कोष (म्यान) को पड़ा रहने दो उसका मूल्य नहीं किया जाता।

|| 10 ||
कबीर संगति साध की , कड़े न निर्फल होई
चन्दन होसी बावना , नीब न कहसी कोई

भावार्थ || 10 || – कबीर कहते हैं कि साधु की संगति कभी निष्फल नहीं होती। चन्दन का वृक्ष यदि छोटा – (वामन – बौना ) भी होगा तो भी उसे कोई नीम का वृक्ष नहीं कहेगा। वह सुवासित ही रहेगा और अपने परिवेश को सुगंध ही देगा। अपने आस-पास को खुशबू से ही भरेगा अर्थात संसार में सबसे बड़ा लाभ है साधु की संगति का प्राप्त होना।

|| 11 ||
नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए
मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए

भावार्थ  || 11 || – कबीर दास जी कहते हैं कि आप कितना भी नहा धो लीजिए, अगर मन का मैल ही नहीं गया तो ऐसे नहाने से क्या फ़ायदा? मछली हमेशा पानी में ही रहती है, पर फिर भी उसे कितना भी धोइए, उसकी बदबू नहीं जाती।


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